नीता लिंबाचिया, अमदावाद
05 अप्रैल 2023:
जलवायु परिवर्तन की शिक्षा को क्लासरूम की डायनैमिक्स के साथ मिलाना ही जलवायु संकटको हल करने का एकमात्र तरीका हैलेखिका: अमृता चंद्रा राजूवाइस प्रिंसिपल – द हैदराबाद पब्लिक स्कूल, बेगमपेटभारत में स्कूलों को गर्मियों के लिए तय समय से हफ्तों पहले ही बंद कर दिया जाएगा। गर्मी की झुलसाती लहरेंकई राज्यों को स्कूली पढ़ाई का समय बदलने और सालाना ग्रीष्मकालीन छुट्टियां जल्द कर देने को मजबूर करदेती हैं। यह देश प्रचंड गर्मी से अपरिचित नहीं है, और हमें अपने स्कूलों को जलवायु परिवर्तन झेलने लायकबनाने के लिए पहले से कहीं ज्यादा प्रयास करने की जरूरत है। कोविड-19 के कहर ने स्कूलों की पढ़ाई-लिखाईको गंभीर रूप से बाधित कर दिया था। लेकिन उस भीषण दौर की समाप्ति के दो साल बाद भी हम अपने बच्चोंको जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर, भारत जैसे देशों के लिए, इसके दीर्घकालिक असर को समझाने की जगह,अभी भी आसान शॉर्टकट अपना रहे हैं और स्कूलों को बंद कर रहे हैं।
यूनिसेफ ने 2020 के दौरान आठ दक्षिणएशियाई देशों में 25,000 शिक्षार्थियों के बीच एक सर्वेक्षण कराया था। सर्वे में शामिल 78% छात्र-छात्राओं नेमाना कि जलवायु परिवर्तन ने उनके शिक्षा के अधिकार पर असर डाला है।जलवायु परिवर्तन यह आमूलचूल बदलाव भी लाने जा रहा है कि छात्र-छात्राएं कहाँ रह पाएंगे और वयस्कहोकर वे कौन-से काम किया करेंगे। इस पर तुर्रा यह है कि नवयुवकों के ऐतबार से सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुद्दाहोने के बावजूद, यह कई राज्यों में और देस भर के मिडिल स्कूल विज्ञान पाठ्यक्रम में बहुत कम नजर आता है।यूनेस्को के एक अध्ययन ने लगभग 50 देशों की शिक्षा योजनाओं का विश्लेषण करने के बाद पाया कि ऐसी आधेसे ज्यादा योजनाएं जलवायु परिवर्तन का जिक्र तक नहीं करतीं।बच्चों को उनकी नैतिक दिशा पकड़ाने और तर्क के दम पर उस दिशा में आगे बढ़ाने का सर्वोत्तम स्थान स्कूल हीहोते हैं। विद्यार्थियों को यह जानना-समझना होगा कि जलवायु परिवर्तन दुनिया भर के अलग-अलग इलाकोंऔर आबादियों को कैसे प्रभावित करता है। इसका ज्ञान होने से उनकी हमदर्दी बढ़ेगी और उनमें वैश्विकजागरूकता उत्पन्न हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप छात्र-छात्राएं अपने मौजूदा पर्यावरण से परे हटकरसोचने को प्रेरित होंगे तथा दुनिया भर के लोगों और पारिस्थितिक तंत्र पर अपने कार्यों के प्रभाव को लेकरविचार करेंगे।जब मैं कहती हूं कि लगभग 60 प्रतिशत भारतीय माता-पिता स्कूलों में जलवायु परिवर्तन के बारे में पढ़ाए जानेकी वकालत कर रहे हैं, तो मेरी बात का भरोसा करें, क्योंकि यह भावना खुद छात्र-छात्राओं ने मेरे साथ साझाकी है। हमें जो सबसे अहम दखलंदाजी बढ़ाने की जरूरत है, वह है विभिन्न रूपों के माध्यम से कक्षा में जलवायुपरिवर्तन को पढ़ाने के लिए शिक्षकों का पेशेवर समर्थन करना।
इन रूपों में क्लासरूम की औपचारिक पढ़ाई सेलेकर अनेक एक्ट्राकरीकुलर (पाठ्येतर) गतिविधियां तक शामिल की जा सकती हैं, लेकिन कई शिक्षकों कीविज्ञान को लेकर सीमित समझ के चलते, किसी क्लासरूम के भीतर जलवायु परिवर्तन के बारे में समग्रता सेपढ़ाना आसान नहीं होता।शिक्षाविदों के रूप में, हमें यह हिसाब लगाना होगा कि हर ग्रेड के स्तर पर जलवायु से संबंधित विषयों औरचर्चाओं को कैसे एकीकृत किया जाए। किंडरगार्टन के बच्चों को इस विषय से परिचित कराना, और केवल विज्ञान वर्ग में ही नहीं, बल्कि कला, विश्व भाषाओं, सामाजिक अध्ययन और शारीरिक शिक्षा के छात्रों को भी यह विषय पढ़ाना पूरे खेल का रुख बदल सकता है। ग्रीनहाउस गैसों की भूमिका, पारिस्थितिक तंत्र और मानव स्वास्थ्य पर बढ़ते तापमान का प्रभाव, जलवायु परिवर्तन के सामाजिक व आर्थिक असर तथा गरीबी, सार्वजनिक स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा पर इसके दुष्प्रभावों सहित ऐसे कई दिलचस्प विषय हैं, जिन्हें ज्यादातर कक्षाओं में पढ़ाया जा सकता है।
जलवायु परिवर्तन की एक-दूसरे से गुंथे विषयों वाली शिक्षा पर बल देने की महती आवश्यकता आन पड़ी है। छात्र-छात्राओं को अक्षय ऊर्जा, कार्बन मूल्य निर्धारण और सस्टेनेबल खेती जैसी उन नीतियों और समाधानों के बारे में भी जानना चाहिए, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रस्तावित किए जा रहे हैं। ग्रीनहाउस प्रभाव को प्रदर्शित करने वाले प्रयोग करने, स्थानीय मौसम के पैटर्न से जुड़े डेटा का विश्लेषण करने, उनके स्कूल या समुदाय के लिए किसी स्थायी ऊर्जा परियोजना को डिजाइन करने जैसी सीखने-सिखाने वाली गतिविधियों में छात्र-छात्राओं को सीधे शामिल करके, हम उन्हें यह समझा सकते हैं कि ऐसे कई तरीके हैं जिनसे वे फर्क पैदा कर सकते हैं। अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करना, अक्षय ऊर्जा का साथ देना, सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा देने वाली नीतियों की वकालत करना आदि- ऐसे कई तरीके हैं, जिनको अपनाकर स्कूल इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए खुद को ख़ास पोजीशन में खड़ा कर सकते हैं।
स्कूलों में जलवायु शिक्षा का प्रभावी कार्यान्वयन स्कूलों में जलवायु शिक्षा को प्रभावी ढंग से लागू करना जरूरी है और इसके लिए अनिवार्य हो जाता है कि हम इस विषय पर सटीक अद्यतन जानकारी से युक्त संसाधनों और अध्ययन सामग्री के साथ शिक्षकों को लैस करने जैसे मामलों पर ध्यान केंद्रित करें। व्यावहारिक शिक्षण गतिविधियों के लिए संसाधन, विशेषज्ञता और अवसर प्रदान करने हेतु सामुदायिक संगठनों, कारोबारों और सरकारी एजेंसियों के साथ साझेदारी बनाने से भी सिर्फ
स्कूलों पर पड़ी जिम्मेदारी का बोझ घट सकता है। आखिरकार जिस काम के लिए स्कूल बने हैं, उसके केंद्र और मूल में जलवायु परिवर्तन की शिक्षा है, वो काम है: बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करते हुए, उनके आसपास की दुनिया को समझने में मदद करना।
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