सुहागिन अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिये करती हैं व्रत
उपेन्द्रकुमार तिवारी, दुद्धी, सोनभद्र (उत्तरप्रदेश)
19 मई, 2023:
विंढमगंज/सोनभद्र। पौराणिक कथाओं के अनुसार सावित्री ने तपस्या और व्रत-उपवास के बल पर यमराज से अपने पति के प्राण वापस मांगे थे. उसी प्रकार हर सुहागिन अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं और इसलिए वट सावित्री का भी व्रत रखा जाता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कोई भी व्रत या पूजा यदि शुभ मुहूर्त में की जाए तो वह अधिक फलदायी मानी जाती है. इसलिए पूजा के लिए शुभ मुहूर्त अवश्य पता होना चाहिए. वट सावित्री व्रत के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त विद्ववानों के अनुसार सुबह 7 बजकर 19 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगा.
वट सावित्री व्रत का महत्व
व्रतधारियों ने बताया कि ये व्रत इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन सावित्री ने सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लिए थे. तभी से ये व्रत पति की लंबी आयु के लिए रखा जाने लगा. इस व्रत में वट वृक्ष का महत्व बहुत होता है. इस दिन सुहागिन स्त्रियां वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ का पूजन करती है और उसकी परिक्रमा लगाती हैं. बरगद के पेड़ की 7,11,21,51 या 101 परिक्रमा लगाई जाती है. पेड़ पर सात बार कच्चा सूत लपेटा जाता है.
पूजन विधि
ज्योतिष एवं विद्ववानों के माने तो इस दिन सुबह उठकर स्नान करें. साफ वस्त्र पहनें. हो सके तो नए वस्त्र धारण करें. वट वृक्ष के आसपास गंगाजल का छिड़काव करें. बांस की टोकरी लें और उसमें सत अनाजा भर दें. इसके ऊपर ब्रह्माजी, सावित्री और सत्यवान की मूर्ति रखें. ध्यान रहे कि सावित्री की मूर्ति ब्रह्माजी के बाईं ओर हो और सत्यवान की दाईं ओर.
वट वृक्ष को जल चढ़ाएं और फल, फूल, मौली, चने की दाल, सूत, अक्षत, धूप-दीप, रोली आदि से वट वृक्ष की पूजा करें. बांस के पंखे से सावित्री-सत्यवान को हवा करें और बरगद के एक पत्ते को अपने बालों में लगाएं.
वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की कथा सुनें. अखंड सुहाग की कामना करें और सूत के धागे से वट वृक्ष की तीन बार परिक्रमा करें. आप 5,11, 21, 51 या 108 बार बरगद के पेड़ की परिक्रमा कर सकती हैं. जितनी ज्यादा परिक्रमा करेंगी उतना अच्छा होगा.
परिक्रमा करने के बाद बांस के पत्तल में चने की दाल और फल, फूल नैवैद्य आदि डाल कर दान करें और ब्राह्मण को दक्षिणा दें. पूजा संपन्न होने के बाद जिस बांस के पंखे से सावित्री-सत्यवान को हवा किया था, उसे घर ले जाकर पति को भी हवा करें. फिर प्रसाद में चढ़े फल आदि ग्रहण करने के बाद शाम के वक्त मीठा भोजन करें।
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