नवलजी, बलिया(उत्तर प्रदेश)
दिनांक:०३ जनवरी २०२२:
बलिया महावीर घाट स्थित गायत्री शक्तिपीठ के प्रागंण में चल रहे 108 कुंडीय गायत्री महायज्ञ के दौरान देव संस्कृत विश्वविद्यालय शांतिकुंज हरिद्वार के एसोसिएट प्रोफेसर डा. गायत्री किशोर त्रिवेदी ने कहा कि यज्ञ प्रारंभ करने से पूर्व मंगल कलश निकालने का परंपरा हमारे सनातन धर्म का है। जो किसी देवालय, सरोवर या नदी से जल लेकर निकाला जाता है। इसका उद्देश्य है कि धर्म के प्रति सभी हो, विशेष रूप से नारियों को एक करने का अनुपम प्रयोग है।
समाज की खुशहाली के लिए नर-नारी दोनों की जरुरत पड़ती है, अकेले हो तो दोनों ही अपूर्ण है। दोनो हो तो अपूर्णता में पूर्णता का प्रतीक है। कलश यात्रा, किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए सभी जाति संप्रदाय की आवश्यकता होती है। जब तक हम सभी एक नहीं होगें समाज के कार्यों को हम पूर्ण गति नहीं दे सकते। इसी लिए इस कलशयात्रा का धार्मिक मान्यता दी गई है। कलश धारण करने वालों की लम्बी उम्र, स्वास्थ्य शरीर व मन में शुभ संकल्प का जागरण होता है। इस दौरान संगीत के आचार्य श्रीहरि चौधरी,दिनेश पटेल, दयानंद शिववंशी, मनीषजी व भूषण जी विभिन्न सजों के जरिये उनका साथ दिया।
बलिया में मां गायत्री के वार्षिकोत्सव के अवसर पर चल रहे108 कुंडीय गायत्री महायज्ञ के दौरान हरिद्वार से आये संगीत के आचार्य श्रीहरि चौधरी ने धर्म कार्यो की महत्ता बताते हुए। संगीत के जरिए लोगों को सार्थक व ज्ञान वर्धक संगीत सुनाया। कहा कि आया बुढापा जब जानी, दगा दे गई जवानी।
पहला बुढापा तेरे बालों में आया,
दूसरा बुढापा तेरे आखों में आया, चस्मा की हो गई मेहरबानी।
तीसरा बुढापा तेरे कमर में आया,
लाठी की हो गई मेहरबानी। दगा दे गई …।
चौथा बुढापा तेरे दातों में आया,
नकली दातों की हो गई मेहरबानी दगा दे गई जवानी।
अइल कुछ ना कइल, ई हो देहिया ताहर जिन्दगी के भार हो जाई। जैसे प्रेरणादायक संगीत सुनाकर मत्रमुग्ध कर दिया। इस दौरान श्रोता तालियां बजाकर झूमते रहे।