आजीविका का साधन व जंगलो के कटान को बचाने में मददगार है लघुवनोपज
जितना लघुवनोपज पैदा हो ,उतना क्रय हो जाए तो जनपद से गरीबी दूर हो सकती हैं।
युवाओ को रोजगार के लिए नही जाना पड़ेगा अन्य राज्यों में।
लघुवनोपज से किसान और अन्य लोग हो सकते है मालामाल।
उपेन्द्रकुमार तिवारी, दुद्धी, सोनभद्र (उत्तरप्रदेश)
07 जुलाई 2022:
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद सहित अन्य दो तीन जिलों मे जंगल बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं इन जनपदों में लघु वन उपज अधिक मात्रा में पैदा होता है जिसमें हर्रा, बहेड़ा, नागर मोथा ,जामुन का बीज,बेल गुदा,वन तुलसा आंवला ,कालमेघ , रीठा ,वनजीरा सतावर ,चरोटा ,नागर मोथा गिलोय ,इमली ,महुआ ,धवई फूल, पियार ,नीम का बीज, अश्वगंधा ,पलाश , कोरिया आदि अधिक मात्रा में इन जंगलों में पैदा होते हैं । सरकार का प्रयास होता है कि जंगलों में पैदा होने वाले लघु वन उपज को अधिक मात्रा में क्रय किया जाए जो औषधि के काम आता है परंतु वन विभाग के अधिकारी लघु वन उपज को क्रय करने में रुचि नहीं दिखाते हैं जिसके कारण 80% लघु वन उपज जंगलों में ही नष्ट हो जाते हैं ।
सरकार का प्रयास है कि लोगों को अधिक से अधिक रोजगार उपलब्ध कराया जाए जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हों। एक दशक पूर्व लघु वन उपज को जंगलों से निकालने में आदिवासी लोग अपनी रुचि दिखाते थे परंतु अब स्थिति यह हो गई है कि वन विभाग द्वारा नामित वन निगम द्वारा लघु वन उपज की खरीदी की जाती रही है जो लगभग 20% ही होता है कल्पना कीजिए यदि कोई आदिवासी लघु वन उपज को 100 कुंतल पैदा किया है तो उसका 20 कुंतल ही लघु वन उपज खरीदा जाएगा और 80% उसका लघु वनोपज नहीं खरीदा जाएगा क्योंकि वन निगम अपना एक लक्ष्य निर्धारित कर लेता है लेकिन जब कोई आदिवासी जंगलों में जाता है और लघु वन उपज को अधिक मात्रा में जंगलों या आसपास के क्षेत्रों से कठिन परिश्रम के द्वारा उसको निकालता है और विक्रय करने के समय कम मात्रा में ही खरीदी की जाएगी तो उसकी मेहनत बेकार गई और उसे कुछ हासिल भी ना हो पाया तो इस प्रकार सरकार में बैठे अधिकारी आदिवासियों का शोषण करते हैं एक तरफ सरकार प्रयास कर रही है कि किसानों की आय दोगुनी हो और दूसरी तरफ इस प्रकार का शोषण यह उचित नहीं है।
छत्तीसगढ़ ,मध्य प्रदेश और झारखंड में लघु वन उपज को खरीदी करने में सरकार रुचि दिखाती है जबकि उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं है । आपको बताना चाहूंगा कि जब आप छत्तीसगढ़ ,मध्य प्रदेश जाते हैं तो वहां जंगल हरे भरे दिखते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के जंगलों में इस तरह नहीं दिखाई देता इसका कारण यह है कि मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और झारखंड में वनों का कटान इसलिए नहीं होता क्योंकि वहां के लोग अपने लघु वनोपज को चाहे वह जितना भी पैदा करते हो उतना माल उनका विक्रय हो जाता है चाहे वह लघुवनोपज विभाग ले या कोई व्यापारी उनको लघु वनोपज बेचने में कोई परेशानी नहीं होती है इस प्रकार वहां पर लघु वनोपज आदिवासियों के लिए आजीविका का साधन तथा पर्यावरण संरक्षण का प्रमुख कारण है जबकि उत्तर प्रदेश के लघु वनोपज क्रय करने में पहले तो विभाग रुचि नहीं दिखाती दूसरी लघु वनोपज खरीदने का कम मात्रा में लक्ष्य निर्धारित हो जाता है और तीसरा उस लघु वनोपज को कोई भी आदिवासी अन्य किसी व्यापारी के यहां बेच नहीं सकता है जिसके कारण आदिवासी लघु वनोपज को अब निकालने में ही रुचि नहीं लेता है और अपनी आजीविका के साधन के लिए जंगलों को काट कर लकड़ी बेचना शुरू कर देते हैं जो विभाग और आदिवासी दोनों के लिए आने वाले भविष्य के लिए खराब है।
अगर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश की सरकार बीड़ी पत्ते की खरीद करवाने में अधिक रुचि लेती है जबकि लघु वनोपज को खरीद करवाने में रूचि नहीं दिखाती ऐसा क्यों है इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता डीसीएफ चेयरमैन सुरेंद्र अग्रहरी ने कहा कि उत्तर प्रदेश की सरकार को लघु वनोपज जो आदिवासियों की आजीविका का प्रमुख साधन है जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है और पर्यावरण संरक्षण का कारण बन सकती है इसलिए लघुवनोपज के परिवहन में जिस प्रकार की शिथिलता को करने में छत्तीसगढ़ ,मध्य प्रदेश और झारखंड की सरकार ने किया है उसी तरह उत्तर प्रदेश की सरकार को भी शिथिलता बरतनी चाहिए विभागीय अधिकारी जिस दिन से रुचि दिखाना शुरू कर देउस दिन से उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद सहित अन्य जिलों में जहां लघु वनोपज अधिक मात्रा में पैदा होते हैं और जंगलों में ही नष्ट हो जाते हैं आदिवासी वनवासी किसानों के लिए वरदान साबित होगा ,इसके लिए ऐसे पौधों को लगाए जाने में सक्रियता बढ़ाई जाए तो 10 वर्षो में सोंनभद्र जनपद से गरीबी दूर हो जाएगी और उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि भारतवर्ष में सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला प्रथम जनपद सोंनभद्र हो जाएगा।
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